फाइटर पायलट ने किया फुटबॉल में चमत्कार

फाइटर पायलट रह चुके ब्योर्न मान्सवेर्क जब एक अनजान फुटबॉल टीम से जुड़े, तो वहां परेशानियां का अंबार था. पांच साल के भीतर अब वही टीम यूरोपीय फुटबॉल में चमत्कार कही जा रही है. डॉयचे वैले पर ओंकार सिंह जनौटी की रिपोर्ट- कड़ाके की सर्दी वाले आर्कटिक सर्किल के पास बसे बोडा को मछुआरों का कस्बा कहा जाता है. करीब 55 हजार की आबादी वाले नॉर्वे के इस शहर में सर्दियों में तकरीबन एक घंटा ही उजाला रहता है. कस्बे के ज्यादातर युवा पढ़ाई और काम की तलाश में नॉर्वे के बाकी शहरों का रुख करते हैं. राजधानी ओस्लो से यहां की दूरी करीब 1,000 किलोमीटर है. लेकिन यह गुमनाम सा कस्बा इस वक्त नॉर्वे में सबकी और यूरोप में फुटबॉल प्रेमियों की जबान पर है. बोडा के फुटबॉल क्लब बोडा ग्लिम्ट ने हाल के दिनों में यूरोप की कुछ दिग्गज टीमों को पटखनी दी है. क्लब ने नॉर्वे के पांच बड़े फुटबॉल टूर्नामेंटों में से चार अपने नाम किए हैं और वो यूरोप के बड़े मुकाबलों में भी पहुंच चुकी है. टीम की इस जबरदस्त कायापलट का श्रेय ब्योर्न मान्सवेर्क को दिया जा रहा है. फाइटर पायलट से कोचिंग का सफर रॉयल नॉर्वेजियन एयरफोर्स में स्क्वाड्रन लीडर रह चुके ब्योर्न मान्सवेर्क से कुछ साल पहले बोडा ग्लिम्ट फुटबॉल टीम से जुड़ने की अपील की गई. 9/11 के हमले के बाद अफगानिस्तान में और फिर 2011 में लीबिया में बतौर फाइटर पायलट कई मिशन में शामिल रहे ब्योर्न, तब रिटायर हो चुके थे. 2017 में बोडा ग्लिम्ट टीम बुरी तरह हारने के बाद फर्स्ट लीग से सरक कर दूसरे दर्जे की लीग में पहुंच चुकी थी. 2018 में ब्योर्न ने टीम के मेंटल कोच बनने की दरखास्त मान ली. काम शुरू करते ही ब्योर्न ने देखा कि टीम नकारात्मक ऊर्जा भरी हुई है. 109 साल पुरानी टीम के खिलाड़ी इस कदर निराश थे कि वे एकसाथ मानसिक रूप से टूट से जाते थे. टीम के बेस्ट खिलाड़ी खेल से संन्यास लेने का मन बना रहे थे. मेंटल कोच के नाते ब्योर्न को सारे खिलाड़ियों से खुलकर बात करनी थी. उन्हें हर एक की भावनाओं को सुनना और समझना था. टीम में तनाव और घबराहट के स्तर को न्यूनतम करना था. इसके साथ ही रोजमर्रा की आदतों में भी बदलाव करना था. प्रैक्टिस और पोषण में बदलाव भी नए रूटीन का हिस्सा बने. ब्योर्न ने खिलाड़ियों से क्या कहा 20 साल तक एयरफोर्स के पायलट रहे ब्योर्न मान्सवेर्क के मुताबिक रणनीति एकदम साफ थी, बोरियत वाला काम हर दिन दोहराओ, लेकिन 100 फीसदी सचेत ध्यान के साथ. यह फॉर्मूला उन्होंने 2010 में पॉयलटों के लिए आयोजित एक वर्कशॉप में सीखा था. मेंटल कोच ने टीम से साफ कहा किहार या जीत से कोई फर्कनहीं पड़ता है. खिलाड़ियों को सिर्फ ब्योर्न की फिलॉसफी और संस्कृति को अमल में लाना था. वह कहते हैं, मुझे लगता है कि ये संभव है....अगर आपकी मानसिकता सही हो और आप समय के साथ लगातार कड़ी मेहनत करते रहें तो. हर खिलाड़ी टीम की अलग-अलग जिम्मेदारियों को समझ सके, इसके लिए ब्योर्न ने आठ खिलाड़ियों को कैप्टन बनाया. इन कप्तानों को बार-बार बदला जाता था. दोस्ताना मैचों या ट्रेनिंग के दौरान, हर गोल खाने के बाद टीम एक गोल घेरा बनाती थी और ये चर्चा करती थी कि गलती कहां हुई और अब एकजुट होकर क्या करना है. मेंटल कोच ने इस पॉलिसी को बोडा ग्लिम्ट रिंग नाम दिया. ब्योर्न के मुताबिक खिलाड़ियों को एक ही लक्ष्य दिया गया था कि वे अपना सबसे अच्छा रूप पेश करें. क्लब के चैयरमैन इंगे हेनिंग आंदेर्सन के मुताबिक, 2016 में टीम के बेहद अनुभवी मिडफील्डर उलरिक साल्टनेस रिटायरमेंट की सोचने लगे. तनाव के चलते उन्हें पेट संबंधी परेशानियां हो रही थीं. आंदेर्सन याद करते हुए कहते हैं कि ब्योर्न मान्सवेर्क और साल्टनेस के बीच बहुत ही शानदार संवाद हुआ. आज 32 साल के साल्टनेस टीम के मजबूत स्तंभ और कप्तान हैं. एक बार बीबीसी से बातचीत में साल्टनेस ने कहा, मुझे नहीं लगता कि ब्योर्न और उस मानसिक तैयारी के बिना खेलना संभव है जो हम करते हैं.

फाइटर पायलट ने किया फुटबॉल में चमत्कार
फाइटर पायलट रह चुके ब्योर्न मान्सवेर्क जब एक अनजान फुटबॉल टीम से जुड़े, तो वहां परेशानियां का अंबार था. पांच साल के भीतर अब वही टीम यूरोपीय फुटबॉल में चमत्कार कही जा रही है. डॉयचे वैले पर ओंकार सिंह जनौटी की रिपोर्ट- कड़ाके की सर्दी वाले आर्कटिक सर्किल के पास बसे बोडा को मछुआरों का कस्बा कहा जाता है. करीब 55 हजार की आबादी वाले नॉर्वे के इस शहर में सर्दियों में तकरीबन एक घंटा ही उजाला रहता है. कस्बे के ज्यादातर युवा पढ़ाई और काम की तलाश में नॉर्वे के बाकी शहरों का रुख करते हैं. राजधानी ओस्लो से यहां की दूरी करीब 1,000 किलोमीटर है. लेकिन यह गुमनाम सा कस्बा इस वक्त नॉर्वे में सबकी और यूरोप में फुटबॉल प्रेमियों की जबान पर है. बोडा के फुटबॉल क्लब बोडा ग्लिम्ट ने हाल के दिनों में यूरोप की कुछ दिग्गज टीमों को पटखनी दी है. क्लब ने नॉर्वे के पांच बड़े फुटबॉल टूर्नामेंटों में से चार अपने नाम किए हैं और वो यूरोप के बड़े मुकाबलों में भी पहुंच चुकी है. टीम की इस जबरदस्त कायापलट का श्रेय ब्योर्न मान्सवेर्क को दिया जा रहा है. फाइटर पायलट से कोचिंग का सफर रॉयल नॉर्वेजियन एयरफोर्स में स्क्वाड्रन लीडर रह चुके ब्योर्न मान्सवेर्क से कुछ साल पहले बोडा ग्लिम्ट फुटबॉल टीम से जुड़ने की अपील की गई. 9/11 के हमले के बाद अफगानिस्तान में और फिर 2011 में लीबिया में बतौर फाइटर पायलट कई मिशन में शामिल रहे ब्योर्न, तब रिटायर हो चुके थे. 2017 में बोडा ग्लिम्ट टीम बुरी तरह हारने के बाद फर्स्ट लीग से सरक कर दूसरे दर्जे की लीग में पहुंच चुकी थी. 2018 में ब्योर्न ने टीम के मेंटल कोच बनने की दरखास्त मान ली. काम शुरू करते ही ब्योर्न ने देखा कि टीम नकारात्मक ऊर्जा भरी हुई है. 109 साल पुरानी टीम के खिलाड़ी इस कदर निराश थे कि वे एकसाथ मानसिक रूप से टूट से जाते थे. टीम के बेस्ट खिलाड़ी खेल से संन्यास लेने का मन बना रहे थे. मेंटल कोच के नाते ब्योर्न को सारे खिलाड़ियों से खुलकर बात करनी थी. उन्हें हर एक की भावनाओं को सुनना और समझना था. टीम में तनाव और घबराहट के स्तर को न्यूनतम करना था. इसके साथ ही रोजमर्रा की आदतों में भी बदलाव करना था. प्रैक्टिस और पोषण में बदलाव भी नए रूटीन का हिस्सा बने. ब्योर्न ने खिलाड़ियों से क्या कहा 20 साल तक एयरफोर्स के पायलट रहे ब्योर्न मान्सवेर्क के मुताबिक रणनीति एकदम साफ थी, बोरियत वाला काम हर दिन दोहराओ, लेकिन 100 फीसदी सचेत ध्यान के साथ. यह फॉर्मूला उन्होंने 2010 में पॉयलटों के लिए आयोजित एक वर्कशॉप में सीखा था. मेंटल कोच ने टीम से साफ कहा किहार या जीत से कोई फर्कनहीं पड़ता है. खिलाड़ियों को सिर्फ ब्योर्न की फिलॉसफी और संस्कृति को अमल में लाना था. वह कहते हैं, मुझे लगता है कि ये संभव है....अगर आपकी मानसिकता सही हो और आप समय के साथ लगातार कड़ी मेहनत करते रहें तो. हर खिलाड़ी टीम की अलग-अलग जिम्मेदारियों को समझ सके, इसके लिए ब्योर्न ने आठ खिलाड़ियों को कैप्टन बनाया. इन कप्तानों को बार-बार बदला जाता था. दोस्ताना मैचों या ट्रेनिंग के दौरान, हर गोल खाने के बाद टीम एक गोल घेरा बनाती थी और ये चर्चा करती थी कि गलती कहां हुई और अब एकजुट होकर क्या करना है. मेंटल कोच ने इस पॉलिसी को बोडा ग्लिम्ट रिंग नाम दिया. ब्योर्न के मुताबिक खिलाड़ियों को एक ही लक्ष्य दिया गया था कि वे अपना सबसे अच्छा रूप पेश करें. क्लब के चैयरमैन इंगे हेनिंग आंदेर्सन के मुताबिक, 2016 में टीम के बेहद अनुभवी मिडफील्डर उलरिक साल्टनेस रिटायरमेंट की सोचने लगे. तनाव के चलते उन्हें पेट संबंधी परेशानियां हो रही थीं. आंदेर्सन याद करते हुए कहते हैं कि ब्योर्न मान्सवेर्क और साल्टनेस के बीच बहुत ही शानदार संवाद हुआ. आज 32 साल के साल्टनेस टीम के मजबूत स्तंभ और कप्तान हैं. एक बार बीबीसी से बातचीत में साल्टनेस ने कहा, मुझे नहीं लगता कि ब्योर्न और उस मानसिक तैयारी के बिना खेलना संभव है जो हम करते हैं.