छत्तीसगढ़ संवाददाता
राजनांदगांव, 19 अगस्त। भाजपा किसान नेता अशोक चौधरी ने एक अंतरराष्ट्रीय शोध के हवाले से बताया कि आने वाले वर्षों में खेती कार्य एक दुष्कर कार्य हो जाएगा।
वर्तमान में 65 प्रतिशत बुजुर्ग लोग खेती करते हैं। शोध के अनुसार नवयुवक कृषि कार्य नहीं अपनाना चाहते जो कृषि कार्य करना चाहते हैं, वह केवल 32 प्रतिशत है। ऐसे में विश्व की बढ़ती हुई आबादी को भोजन कैसे प्राप्त होगा। हिंदुस्तान जैसे देश में केवल 42 प्रतिशत नवयुवक खेती के प्रति रुझान रखते हैं। वैश्विक स्तर पर खेती का रकबा भी कम होते जा रहा है। भारत वर्ष में खेती की जगह पर नई-नई कॉलोनी शासकीय स्तर पर प्रधानमंत्री आवास योजना की कॉलोनी बनती जा रही है। गांव में भी लोग परिवार के विघटन की वजह से आबादी भूमि छोडक़र खेतों में भी घर बना रहे हैं।
अशोक चौधरी ने कहा कि 1970 तक धान और सोना के दाम में ज्यादा अंतर नहीं था। दो क्विंटल धान बेचने से एक तोला सोना खरीदने के बाद भी पैसा बच जाता था, लेकिन आज सोना 1 लाख से ऊपर हो गया है, जो शिक्षक 1970 में 100 रुपए तनख्वाह पाते थे, आज वह 60000 पा रहे हैं, उसके मुकाबले किसानों को लाभकारी मूल्य नहीं दिया गया है। यदि किसानों को अतिरिक्त लाभ नहीं दिया गया तो स्थिति भयावह हो सकती है। भारत की जनसंख्या विश्व में पहले नंबर पर है। खेती उसी हिसाब से कम होते जा रही है। जैसे कर्मचारियों को आने वाले समय में आठवां वेतन का लाभ दिया जाएगा। इस तरह किसानों को भी अलग से लाभकारी मूल्य दिया जाना चाहिए। यह समय की मांग है। याद रहे कि अनाज से ही धूप मिटेगी। कम्प्यूटर या मशीन से धन कमाया जा सकता है, लेकिन भूख नहीं मिटाया जा सकता, किसानों को तवज्जो देना ही पड़ेगा।
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राजनांदगांव, 19 अगस्त। भाजपा किसान नेता अशोक चौधरी ने एक अंतरराष्ट्रीय शोध के हवाले से बताया कि आने वाले वर्षों में खेती कार्य एक दुष्कर कार्य हो जाएगा।
वर्तमान में 65 प्रतिशत बुजुर्ग लोग खेती करते हैं। शोध के अनुसार नवयुवक कृषि कार्य नहीं अपनाना चाहते जो कृषि कार्य करना चाहते हैं, वह केवल 32 प्रतिशत है। ऐसे में विश्व की बढ़ती हुई आबादी को भोजन कैसे प्राप्त होगा। हिंदुस्तान जैसे देश में केवल 42 प्रतिशत नवयुवक खेती के प्रति रुझान रखते हैं। वैश्विक स्तर पर खेती का रकबा भी कम होते जा रहा है। भारत वर्ष में खेती की जगह पर नई-नई कॉलोनी शासकीय स्तर पर प्रधानमंत्री आवास योजना की कॉलोनी बनती जा रही है। गांव में भी लोग परिवार के विघटन की वजह से आबादी भूमि छोडक़र खेतों में भी घर बना रहे हैं।
अशोक चौधरी ने कहा कि 1970 तक धान और सोना के दाम में ज्यादा अंतर नहीं था। दो क्विंटल धान बेचने से एक तोला सोना खरीदने के बाद भी पैसा बच जाता था, लेकिन आज सोना 1 लाख से ऊपर हो गया है, जो शिक्षक 1970 में 100 रुपए तनख्वाह पाते थे, आज वह 60000 पा रहे हैं, उसके मुकाबले किसानों को लाभकारी मूल्य नहीं दिया गया है। यदि किसानों को अतिरिक्त लाभ नहीं दिया गया तो स्थिति भयावह हो सकती है। भारत की जनसंख्या विश्व में पहले नंबर पर है। खेती उसी हिसाब से कम होते जा रही है। जैसे कर्मचारियों को आने वाले समय में आठवां वेतन का लाभ दिया जाएगा। इस तरह किसानों को भी अलग से लाभकारी मूल्य दिया जाना चाहिए। यह समय की मांग है। याद रहे कि अनाज से ही धूप मिटेगी। कम्प्यूटर या मशीन से धन कमाया जा सकता है, लेकिन भूख नहीं मिटाया जा सकता, किसानों को तवज्जो देना ही पड़ेगा।