सामाजिक सद्भाव और जनकल्याणकारी कार्यों से मनाते हैं माहेश्वरी वंशोउत्पति दिवस-मोहता

रायपुर, 15 जून। रायपुर युवा मंडल के संजय मोहता ने बताया कि धर्मग्रंथों के अनुसार माहेश्वरी समाज के पूर्वज पूर्वकाल में क्षत्रिय वंश के थे। शिकार के दौरान वह ऋषियों के शाप से ग्रसित हुए। भगवान महेश और माता पार्वती की कृपा से 72 क्षत्रिय उमराव को पुनर्जीवन मिला और माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई। जेष्ठ शुक्ल नवमी के दिन भगवान शंकर ने अपनी कृपा से उन्हें शाप से मुक्त कर न केवल पूर्वजों की रक्षा की, बल्कि इस समाज को अपना नाम भी दिया। श्री मोहता ने बताया कि भगवान महेश और माता पार्वती को माहेश्वरी समाज का संस्थापक माना जाता है,भगवान की कृपा से ही यह समुदाय को माहेश्वरी नाम से पहचाना जाता है । माहेश्वरी समाज के आराध्य भगवान शिव पृथ्वी,कमल पुष्प पर बेलपत्ती, त्रिपुंड्र, त्रिशूल, डमरू के साथ लिंग रूप में शोभायमान होते हैं। इसको हम विस्तार से ऐसे भी जानते है, पृथ्वी - पृथ्वी गोल परिधि में है, परंतु भगवान महेश ऊपर हैं अर्थात पृथ्वी की परिधि भी जिन्हें नहीं बांध सकती। वह एक लिंग भगवान महेश संपूर्ण ब्रह्मांड में सबसे ऊपर हैं। त्रिपुंड्र - इसमें तीन आड़ी रेखाएं हैं जो कि संपूर्ण ब्रह्मांड को समाए हुए हैं। एक खड़ी रेखा यानी भगवान शिव का ही तीसरा नेत्र, जो कि दुष्टों के दमन हेतु खुलता है। श्री मोहता ने बताया कि यह त्रिपुंड भस्म से ही लगाया जाता है, जो कि देवाधिदेव महादेव की वैराग्य वृत्ति के साथ ही त्यागवृत्ति की ओर इंगित करता है तथा आदेश देता है कि हम भी अपने जीवन में हमेशा त्याग व वैराग्य की भावना को समाहित कर समाज व देश का उत्थान करें। श्री मोहता ने बताया कि माहेश्वरी समाज में यह उत्सव माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन के रुप में पूरे भारत वर्ष में बहुत ही भव्य रूप में और बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है. इस उत्सव की तैयारी पहले से ही शुरु हो जाती है. इस दिन जन कल्याण कार्यक्रम जैसे भंडारा, शर्बत वितरण,रक्तदान शिविर,चिकित्सा शिविर,के साथ साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम धार्मिक कार्यक्रम भी किए जाते हैं,भव्य शोभायात्रा निकाली जाती हैं,महेश वंदना गाई जाती है, भगवान महेशजी की महाआरती होती है,हर घर मे रंगोली और दीप प्रज्वलित होता है। यह पर्व भगवान महेश और पार्वती के प्रति समर्पित पूर्ण भक्ति और त्याग,सेवा,और सदाचार की आस्था प्रगट करता है।

सामाजिक सद्भाव और जनकल्याणकारी कार्यों से मनाते हैं माहेश्वरी वंशोउत्पति दिवस-मोहता
रायपुर, 15 जून। रायपुर युवा मंडल के संजय मोहता ने बताया कि धर्मग्रंथों के अनुसार माहेश्वरी समाज के पूर्वज पूर्वकाल में क्षत्रिय वंश के थे। शिकार के दौरान वह ऋषियों के शाप से ग्रसित हुए। भगवान महेश और माता पार्वती की कृपा से 72 क्षत्रिय उमराव को पुनर्जीवन मिला और माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई। जेष्ठ शुक्ल नवमी के दिन भगवान शंकर ने अपनी कृपा से उन्हें शाप से मुक्त कर न केवल पूर्वजों की रक्षा की, बल्कि इस समाज को अपना नाम भी दिया। श्री मोहता ने बताया कि भगवान महेश और माता पार्वती को माहेश्वरी समाज का संस्थापक माना जाता है,भगवान की कृपा से ही यह समुदाय को माहेश्वरी नाम से पहचाना जाता है । माहेश्वरी समाज के आराध्य भगवान शिव पृथ्वी,कमल पुष्प पर बेलपत्ती, त्रिपुंड्र, त्रिशूल, डमरू के साथ लिंग रूप में शोभायमान होते हैं। इसको हम विस्तार से ऐसे भी जानते है, पृथ्वी - पृथ्वी गोल परिधि में है, परंतु भगवान महेश ऊपर हैं अर्थात पृथ्वी की परिधि भी जिन्हें नहीं बांध सकती। वह एक लिंग भगवान महेश संपूर्ण ब्रह्मांड में सबसे ऊपर हैं। त्रिपुंड्र - इसमें तीन आड़ी रेखाएं हैं जो कि संपूर्ण ब्रह्मांड को समाए हुए हैं। एक खड़ी रेखा यानी भगवान शिव का ही तीसरा नेत्र, जो कि दुष्टों के दमन हेतु खुलता है। श्री मोहता ने बताया कि यह त्रिपुंड भस्म से ही लगाया जाता है, जो कि देवाधिदेव महादेव की वैराग्य वृत्ति के साथ ही त्यागवृत्ति की ओर इंगित करता है तथा आदेश देता है कि हम भी अपने जीवन में हमेशा त्याग व वैराग्य की भावना को समाहित कर समाज व देश का उत्थान करें। श्री मोहता ने बताया कि माहेश्वरी समाज में यह उत्सव माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन के रुप में पूरे भारत वर्ष में बहुत ही भव्य रूप में और बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है. इस उत्सव की तैयारी पहले से ही शुरु हो जाती है. इस दिन जन कल्याण कार्यक्रम जैसे भंडारा, शर्बत वितरण,रक्तदान शिविर,चिकित्सा शिविर,के साथ साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम धार्मिक कार्यक्रम भी किए जाते हैं,भव्य शोभायात्रा निकाली जाती हैं,महेश वंदना गाई जाती है, भगवान महेशजी की महाआरती होती है,हर घर मे रंगोली और दीप प्रज्वलित होता है। यह पर्व भगवान महेश और पार्वती के प्रति समर्पित पूर्ण भक्ति और त्याग,सेवा,और सदाचार की आस्था प्रगट करता है।