100 बरस से जहां हो रहा था दाह संस्कार, बंदोबस्त में कर दिया दूसरे के नाम

गर्दनपाट क्षेत्र के लोग पहुंचे कलेक्टोरेट छत्तीसगढ़ संवाददाता अंबिकापुर, 26 सितंबर। सौ बरस से अधिक समय से जिस भूमि पर आसपास के लोग दाह संस्कार और समाधि संस्कार किया करते थे, उस भूमि को 1954-55 के समय बंदोबस्त में दूसरे के नाम कर दिया गया। क्षेत्रवासी आज इस मामले को लेकर कलेक्टर के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन प्रेषित किया है। इस दौरान भाजपा प्रदेश महामंत्री किसान मोर्चा भारत सिंह सिसोदिया भी मौजूद थे। लोगों के द्वारा श्मशान की भूमि मुक्त कराकर विकसित करने की मांग की गई है। क्षेत्र वासियों ने बताया कि ग्राम पंचायत श्रीगढ़ और बुधियाचुवां की सीमा पर स्थित गर्दनपाट मुक्तिधाम 4 एकड़ से भी ज्यादा क्षेत्र में है। विगत 100 वर्षों से अधिक समय से पंचायत श्रीगढ़,नवागढ़, बधियाचुआ घुटरापारा, लुचकी, कांति प्रकाशपुर एवं नगर निगम के वार्ड क्र.41,42,43 आदि क्षेत्रवासी संदर्भित स्थान पर अपनी- अपनी आस्था अनुरूप दाह संस्कार व समाधि संस्कार करते रहे हैं। पीढिय़ों से अपने पूर्वजों के अंतिम संस्कार और क्रियाकर्म की वजह से उक्त भूमि से जन आस्था व जन भावनाएँ जुड़ी हुई हैं। अन्य मुक्तिधाम की तरह पारंपरिक मरघट गर्दनपाट मुक्तिधाम को ग्राम पंचायत द्वारा विकसित करने की पहल पर ज्ञात हुआ कि उक्त भूमि का पट्टा किसी अन्य के नाम पर वर्ष 1954-55 में बंदोबस्त हुआ था। क्षेत्रवासियों ने सवाल करते हुए कहा कि 100 वर्षों से अधिक समय से जिस भूमि पर अंतिम संस्कार होते रहे हैं उक्त भूमि को पैसठ वर्ष पूर्व किन परिस्थितियों में मो. अब्दुल बसीर के नाम बंदोबस्त किया गया। उक्त व्यक्ति ना तो पूर्व में संबंधित ग्राम अथवा आस-पास के निवासी थे न ही आज भी उनके वारिसों का इन गांवों से कोई नाता है। जाँच का विषय यह भी है कि जब मोहम्मद अब्दुल बसौर को 1954-55 में बंदोबस्त दिया गया, तब वे कहाँ के निवासी थे। क्षेत्रवासियों ने मांग करते हुए कहा कि विपरीत परिस्थितियों में होने वाले अंतिम संस्कार की कठिनाइयों से ग्राम वासियों को मुक्त कराया जाए और यथाशीघ्र संपूर्ण जाँच कर ग्राम वासियों को राहत प्रदान किया जाए। इसके साथ-साथ जाँच पूरी होने तक ग्राम पंचायत द्वारा अस्थाई निर्माण की अनुमति प्रदान किए जाने की मांग की गई है। इस दौरान क्षेत्रवासी कृष्णा, नेतराम, प्रेमसाय, श्याम, रविंद्र, उदल सहित भारी संख्या में पुरुष एवं महिलाएं मौजूद थे। जाँच रिपोर्ट में हुए अंतिम संस्कारों की स्मृतियाँ स्पष्ट अनुविभागीय अधिकारी की जाँच रिपोर्ट दिनांक 13 फरवरी 2020 के अनुसार उक्त भूमि पर कभी कोई कृषि कार्य नहीं किया गया है, बल्कि वर्षों में हुए अंतिम संस्कारों की स्मृतियाँ स्पष्ट है।अनुविभागीय अधिकारी की जाँच रिपोर्ट के अनुसार खसरा नम्बर 14 रक़बा 4.46 एकड़ भूमि मुर्दा मवेशी चीरने का स्थान के नाम पर दर्ज है । जिससे यह स्पष्ट है कि खसरा क्र. 14 जो कि पहाड़ पर स्थित है, उस पर हिन्दू रीति नीति के अनुसार अंतिम संस्कार संभव नहीं है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शिव का वास अघोर रूप में श्मशान के वटवृक्ष के नीचे होता है, उक्त श्मशान घाट में गर्दन देवता के रूप में स्वयं भोलेनाथ वटवृक्ष के नीचे विराजमान हैं, इसलिए भी खसरा क्रमांक 14 जो के मुक्तिधाम से अलग पहाड़ पर स्थित है उसमें अंतिम संस्कार का प्रश्न ही जन्म नहीं लेता। ज़रूर किसी ने खसरा क्रमांक 14 में भी समाधि संस्कार का काम किया होगा, लेकिन ग्राम वासियों ने खसरा क्रमांक 77/2 रकबा 4.50 एकड़ को ही पारंपरिक रूप से मुक्तिधाम स्वीकार किया है।

गर्दनपाट क्षेत्र के लोग पहुंचे कलेक्टोरेट छत्तीसगढ़ संवाददाता अंबिकापुर, 26 सितंबर। सौ बरस से अधिक समय से जिस भूमि पर आसपास के लोग दाह संस्कार और समाधि संस्कार किया करते थे, उस भूमि को 1954-55 के समय बंदोबस्त में दूसरे के नाम कर दिया गया। क्षेत्रवासी आज इस मामले को लेकर कलेक्टर के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन प्रेषित किया है। इस दौरान भाजपा प्रदेश महामंत्री किसान मोर्चा भारत सिंह सिसोदिया भी मौजूद थे। लोगों के द्वारा श्मशान की भूमि मुक्त कराकर विकसित करने की मांग की गई है। क्षेत्र वासियों ने बताया कि ग्राम पंचायत श्रीगढ़ और बुधियाचुवां की सीमा पर स्थित गर्दनपाट मुक्तिधाम 4 एकड़ से भी ज्यादा क्षेत्र में है। विगत 100 वर्षों से अधिक समय से पंचायत श्रीगढ़,नवागढ़, बधियाचुआ घुटरापारा, लुचकी, कांति प्रकाशपुर एवं नगर निगम के वार्ड क्र.41,42,43 आदि क्षेत्रवासी संदर्भित स्थान पर अपनी- अपनी आस्था अनुरूप दाह संस्कार व समाधि संस्कार करते रहे हैं। पीढिय़ों से अपने पूर्वजों के अंतिम संस्कार और क्रियाकर्म की वजह से उक्त भूमि से जन आस्था व जन भावनाएँ जुड़ी हुई हैं। अन्य मुक्तिधाम की तरह पारंपरिक मरघट गर्दनपाट मुक्तिधाम को ग्राम पंचायत द्वारा विकसित करने की पहल पर ज्ञात हुआ कि उक्त भूमि का पट्टा किसी अन्य के नाम पर वर्ष 1954-55 में बंदोबस्त हुआ था। क्षेत्रवासियों ने सवाल करते हुए कहा कि 100 वर्षों से अधिक समय से जिस भूमि पर अंतिम संस्कार होते रहे हैं उक्त भूमि को पैसठ वर्ष पूर्व किन परिस्थितियों में मो. अब्दुल बसीर के नाम बंदोबस्त किया गया। उक्त व्यक्ति ना तो पूर्व में संबंधित ग्राम अथवा आस-पास के निवासी थे न ही आज भी उनके वारिसों का इन गांवों से कोई नाता है। जाँच का विषय यह भी है कि जब मोहम्मद अब्दुल बसौर को 1954-55 में बंदोबस्त दिया गया, तब वे कहाँ के निवासी थे। क्षेत्रवासियों ने मांग करते हुए कहा कि विपरीत परिस्थितियों में होने वाले अंतिम संस्कार की कठिनाइयों से ग्राम वासियों को मुक्त कराया जाए और यथाशीघ्र संपूर्ण जाँच कर ग्राम वासियों को राहत प्रदान किया जाए। इसके साथ-साथ जाँच पूरी होने तक ग्राम पंचायत द्वारा अस्थाई निर्माण की अनुमति प्रदान किए जाने की मांग की गई है। इस दौरान क्षेत्रवासी कृष्णा, नेतराम, प्रेमसाय, श्याम, रविंद्र, उदल सहित भारी संख्या में पुरुष एवं महिलाएं मौजूद थे। जाँच रिपोर्ट में हुए अंतिम संस्कारों की स्मृतियाँ स्पष्ट अनुविभागीय अधिकारी की जाँच रिपोर्ट दिनांक 13 फरवरी 2020 के अनुसार उक्त भूमि पर कभी कोई कृषि कार्य नहीं किया गया है, बल्कि वर्षों में हुए अंतिम संस्कारों की स्मृतियाँ स्पष्ट है।अनुविभागीय अधिकारी की जाँच रिपोर्ट के अनुसार खसरा नम्बर 14 रक़बा 4.46 एकड़ भूमि मुर्दा मवेशी चीरने का स्थान के नाम पर दर्ज है । जिससे यह स्पष्ट है कि खसरा क्र. 14 जो कि पहाड़ पर स्थित है, उस पर हिन्दू रीति नीति के अनुसार अंतिम संस्कार संभव नहीं है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शिव का वास अघोर रूप में श्मशान के वटवृक्ष के नीचे होता है, उक्त श्मशान घाट में गर्दन देवता के रूप में स्वयं भोलेनाथ वटवृक्ष के नीचे विराजमान हैं, इसलिए भी खसरा क्रमांक 14 जो के मुक्तिधाम से अलग पहाड़ पर स्थित है उसमें अंतिम संस्कार का प्रश्न ही जन्म नहीं लेता। ज़रूर किसी ने खसरा क्रमांक 14 में भी समाधि संस्कार का काम किया होगा, लेकिन ग्राम वासियों ने खसरा क्रमांक 77/2 रकबा 4.50 एकड़ को ही पारंपरिक रूप से मुक्तिधाम स्वीकार किया है।