Uttarkashi Tunnel Accident : ‘रैट होल माइनिंग’ विशेषज्ञों ने काम शुरू किया, वर्टिकल ड्रिलिंग 50 मीटर तक पहुंची
उत्तरकाशी उत्तरकाशी के सिल्क्यारा सुरंग हादसे (Uttarkashi Tunnel Collapse Rescue) को 16 दिन होने को...
उत्तरकाशी
उत्तरकाशी के सिल्क्यारा सुरंग हादसे (Uttarkashi Tunnel Collapse Rescue) को 16 दिन होने को आए हैं. लेकिन अभी भी 41 मजदूर सुंरग के अंदर ही फंसे हैं. उन्हें बाहर निकालने के लिए लगातार ऑपरेशन जारी है. लेकिन सुरंग के मलबे के सामने ड्रिलिंग मशीनें फेल हो गई हैं.
इसके बाद 27 नवंबर से यहां मैनुअल ड्रिलिंग का काम शुरू किया गया है. इसे रैट होल ड्रिलिंग कहते हैं. इसे विशेषज्ञों की एक टीम कर रही है. बताया जा रहा है कि 12 रैट माइनर्स की टीम ने अब तक करीब 4 से 5 मीटर खुदाई की है. इसमें करीब 12 विशेषज्ञ शामिल हैं. समाचार एजेंसी ANI के मुताबिक, इस ऑपरेशन में जुटे माइक्रो टनलिंग के विशेषज्ञ क्रिस कूपर ने 28 नवंबर की सुबह बताया,
"कल रात बहुत अच्छा काम हुआ है. हमने 50 मीटर पार कर लिया है. अब केवल 5 से 6 मीटर की दूरी बाकी है. कल रात हमारे सामने कोई मुश्किल नहीं आई. ये बहुत सकारात्मक दिखाई दे रहा है."
कब तक बाहर आएंगे मजदूर?
सुरंग से मलबा हटाने के लिए वर्टिकल ड्रिलिंग भी की जा रही है. इसके जरिए मजदूरों को सुरंग के ऊपर से रास्ता बनाकर बाहर निकाला जाएगा. वर्टिकल ड्रिलिंग का करीब 42 मीटर तक का काम हो चुका है. वर्टिकल ड्रिलिंग कुल 86 मीटर की गहराई तक की जानी है. उम्मीद की जा रही है कि ये 30 नवंबर तक पूरा हो जाएगा. तब इस 1 मीटर चोड़े शाफ्ट से सुरंग के अंदर फंसे मजदूरों को बाहर निकाल लिया जाएगा.
मजदूरों को बाहर निकालने के लिए एक साथ दो तीन विकल्पों पर काम किया जा रहा है. भारतीय सेना भी इस बचाव ऑपरेशन में शामिल हो गई है. दरअसल, मलबे को ड्रिल कर रही 25 टन की ऑगर मशीन 25 नवंबर को टूट गई. इसके चलते ऑपरेशन का काम और बढ़ गया. बचावकर्मियों को ड्रिल की ब्लेड को काटकर निकालना पड़ा.
ड्रिल मशीन की ब्लेड को काटने और निकालने के लिए 26 नवंबर को हैदराबाद से प्लाज्मा कटर लाया गया. इसके बाद फैसला लिया गया कि अब मलबे को हटाने के लिए मैनुअल ड्रिलिंग की जाएगी. मैनुअल यानी हाथ से किया जाने वाला काम. अब सुरंग के बाहर से विशेषज्ञों की टीम की देखरेख में मलबा हटाने की कोशिश की जा रही है.
क्या है रैट होल माइनिंग?
– सिल्क्यारा सुरंग में बाकी हॉरिजेंटल खुदाई मैन्युअल विधि से की जा रही है. इसमें सुरंग बनाने में विशेष कौशल रखने वाले व्यक्तियों को चुना गया है. इन्हें रैट-होल माइनर कहा जाता है. रैट-होल माइनिंग अत्यंत संकीर्ण सुरंगों में की जाती है. कोयला निकालने के लिए माइनर्स हॉरिजेंटल सुरंगों में सैकड़ों फीट नीचे उतरते हैं. चुनौतीपूर्ण इलाकों खासकर मेघालय में कोयला निकालने के लिए इसका विशेष तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.
– 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मजदूरों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस पर प्रतिबंध लगा दिया था. एनजीटी द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बावजूद, अवैध रूप से रैट-होल खनन जारी है. मेघालय में हर साल कई मजदूरों को रैट होल माइनिंग के दौरान अपनी जान गंवानी पड़ती है. यही वजह है कि इसे लेकर हमेशा से विवाद होता रहा है.
– उत्तराखंड सरकार के नोडल अधिकारी नीरज खैरवाल ने स्पष्ट किया कि रेस्क्यू साइट पर लाए गए लोग रैट माइनर्स नहीं बल्कि इस तकनीक में विशेषज्ञ लोग हैं.
12 नवंबर से फंसे हैं मजदूर
उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सिलक्यारा सुरंग केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी चारधाम ‘ऑल वेदर सड़क' (हर मौसम में आवाजाही के लिए खुली रहने वाली सड़क) परियोजना का हिस्सा है. ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर बन रही यह सुरंग 4.5 किलोमीटर लंबी है. 12 नवंबर को सुरंग का एक हिस्सा ढह गया. इससे मजदूर सुरंग के अंदर ही फंस गए. इन्हें निकलने के लिए 16 दिन से रेस्क्यू अभियान जारी है. लेकिन अभी तक कोई खास सफलता नहीं मिली.