मातृ नवमी पर महिला आचार्यों ने कराया श्राद्ध कर्म:गायत्री शक्तिपीठ पर प्रतिदिन श्राद्ध कर्म करने वालों की भीड़

मंगलनाथ मार्ग अंकपात पर स्थित गायत्री शक्तिपीठ पर श्राद्ध पक्ष में प्रतिदिन श्राद्ध कर्म कराया जा रहा है। गुरूवार को मातृ नवमी का श्राद्ध कराने के लिए महिला आचार्यों के के सानिध्य में श्राद्ध कर्म किया गया। शक्तिपीठ पर प्रतिवर्ष नवमी तिथि पर श्राद्ध कर्म महिला आचार्यों द्वारा संपन्न कराया जाता है। यह क्रम वर्ष 2014 से चल रहा है। गुरूवार को भी बड़ी संख्या में लोगों ने श्राद्ध कर्म पूर्ण किया। श्राद्ध पक्ष के चलते गुरूवार को गायत्री शक्तिपीठ पर नवमी तिथि पर दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध कर्म कराया गया। वैसे श्राद्ध के प्रारंभ होने से ही गायत्री शक्तिपीठ में नि:शुल्क श्राद्ध कराए जा रहे है। मातृ नवमी तिथि पर महिला आचार्यों ने संस्कार कराने की भूमिका निभाई। गायत्री परिवार के प्रचार-प्रसार सहायक देवेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि गायत्री परिवार यज्ञ-अनुष्ठान, पूजन, संस्कार के लिए महिलाओं को भी आचार्य बना रहा है। महिलाओं को आचार्य बनाने की शुरुआत होने से पूजन, यज्ञ, अनुष्ठान, संस्कार कराने में महिलाओं की रुचि बढ़ रही है। महिला आचार्य बनने के लिए गायत्री परिवार में दीक्षित होना तथा नियमित माला करना आवश्यक है। इसके बाद उन्हें एक महीने का आचार्य प्रशिक्षण दिया जाता है। जब वे निपुण हो जाती है तो अनुष्ठान करा सकती है। महिला आचार्य माधुरी सोलंकी ने बताया कि भौतिक जगत में अपनी माँ और आध्यात्मिक जगत में गायत्री माता हमारे सबसे निकटतम रिश्ते हैं। इसी लिए ऋषियों ने तर्पण के समय अपनी माता को गायत्री रूप में जल दान करने का विधान बनाया है। पितरों को तर्पण के समय वसु,आदित्य, रुद्र, सावित्री, लक्ष्मी रुप में कई पितरों को जल दान करने का विधान है पर गायत्री रुपा केवल अपनी माँ को ही कहा गया है। संचालन करने वाली महिला टोली में पंकज राजोरिया भी शामिल थी।

मातृ नवमी पर महिला आचार्यों ने कराया श्राद्ध कर्म:गायत्री शक्तिपीठ पर प्रतिदिन श्राद्ध कर्म करने वालों की भीड़
मंगलनाथ मार्ग अंकपात पर स्थित गायत्री शक्तिपीठ पर श्राद्ध पक्ष में प्रतिदिन श्राद्ध कर्म कराया जा रहा है। गुरूवार को मातृ नवमी का श्राद्ध कराने के लिए महिला आचार्यों के के सानिध्य में श्राद्ध कर्म किया गया। शक्तिपीठ पर प्रतिवर्ष नवमी तिथि पर श्राद्ध कर्म महिला आचार्यों द्वारा संपन्न कराया जाता है। यह क्रम वर्ष 2014 से चल रहा है। गुरूवार को भी बड़ी संख्या में लोगों ने श्राद्ध कर्म पूर्ण किया। श्राद्ध पक्ष के चलते गुरूवार को गायत्री शक्तिपीठ पर नवमी तिथि पर दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध कर्म कराया गया। वैसे श्राद्ध के प्रारंभ होने से ही गायत्री शक्तिपीठ में नि:शुल्क श्राद्ध कराए जा रहे है। मातृ नवमी तिथि पर महिला आचार्यों ने संस्कार कराने की भूमिका निभाई। गायत्री परिवार के प्रचार-प्रसार सहायक देवेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि गायत्री परिवार यज्ञ-अनुष्ठान, पूजन, संस्कार के लिए महिलाओं को भी आचार्य बना रहा है। महिलाओं को आचार्य बनाने की शुरुआत होने से पूजन, यज्ञ, अनुष्ठान, संस्कार कराने में महिलाओं की रुचि बढ़ रही है। महिला आचार्य बनने के लिए गायत्री परिवार में दीक्षित होना तथा नियमित माला करना आवश्यक है। इसके बाद उन्हें एक महीने का आचार्य प्रशिक्षण दिया जाता है। जब वे निपुण हो जाती है तो अनुष्ठान करा सकती है। महिला आचार्य माधुरी सोलंकी ने बताया कि भौतिक जगत में अपनी माँ और आध्यात्मिक जगत में गायत्री माता हमारे सबसे निकटतम रिश्ते हैं। इसी लिए ऋषियों ने तर्पण के समय अपनी माता को गायत्री रूप में जल दान करने का विधान बनाया है। पितरों को तर्पण के समय वसु,आदित्य, रुद्र, सावित्री, लक्ष्मी रुप में कई पितरों को जल दान करने का विधान है पर गायत्री रुपा केवल अपनी माँ को ही कहा गया है। संचालन करने वाली महिला टोली में पंकज राजोरिया भी शामिल थी।