केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय भोपाल में महाकुंभ कॉन्क्लेव 19वां गोलमेज सत्र:"महाकुंभ न केवल भारतीय संस्कृति का हिस्सा बल्कि आस्था, विश्वास और संस्कृति संगम-प्रो. पाण्डेय

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के भोपाल परिसर में इंडिया थिंक काउंसिल द्वारा महाकुंभ कॉन्क्लेव 19वां गोलमेज सत्र आयोजित किया गया। इस सत्र का उद्देश्य महाकुंभ के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को समझना था। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. रमाकान्त पाण्डेय (निदेशक भोपाल परिसर) ने की, उन्होंने महाकुंभ के वैदिक काल से लेकर आधुनिक समय तक के महत्व पर चर्चा की। प्रो. पाण्डेय ने कहा, "महाकुंभ न केवल भारतीय संस्कृति का हिस्सा है, बल्कि यह आस्था, विश्वास और संस्कृति का अद्भुत संगम है।" उन्होंने महाभारत और ऋग्वेद के संदर्भ में महाकुंभ के धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं को उजागर किया। ऋषि महर्षियों का अद्भुत संगम है कुंभ-धनंजय चोपड़ा मुख्य वक्ता धनंजय चोपड़ा, इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने कुंभ को 'अलौकिक और अद्वितीय' बताया। उन्होंने इसे जन संस्कृति का मेला और ऋषि महर्षियों के अद्भुत संगम के रूप में परिभाषित किया। चौपड़ा ने रामचरित मानस की चौपाई उद्धृत करते हुए महाकुंभ के आध्यात्मिक महत्व को रेखांकित किया और इसे भारतीय चेतना के प्रसार का प्रतीक बताया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. अमिताभ पाण्डेय (IGRMS निदेशक) ने महाकुंभ को जीवन संस्कृति का उदाहरण बताते हुए कहा कि कुंभ एक आध्यात्मिक केंद्र है, जहां आस्था और विश्वास का संगम होता है। उन्होंने महाकुंभ में निरंतरता, वैयक्तिक विविधता और सांस्कृतिक चेतना पर विचार करने की आवश्यकता जताई। "हरित महाकुंभ" की आवश्यकता-प्रोफेसर तिवारी सत्र के दौरान वरिष्ठ पत्रकार प्रो. हर्षवर्धन त्रिपाठी और प्रो. नीलाभ तिवारी ने भी महाकुंभ के धार्मिक और आध्यात्मिक पहलुओं पर विचार व्यक्त किए। प्रो. तिवारी ने महाकुंभ के पर्यावरणीय पहलुओं पर बल देते हुए "हरित महाकुंभ" की आवश्यकता पर जोर दिया। इस कार्यक्रम का संचालन प्रो. कृपाशंकर शर्मा ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रो. भारत भूषण मिश्र ने महाकुंभ के ज्योतिषीय महत्व पर प्रकाश डालते हुए किया। इस सत्र में परिसर के सभी प्राध्यापक, शोध छात्र और कर्मचारी उपस्थित थे। कार्यक्रम के समापन पर "कल्याण मंत्र" के साथ इस विचार-मंच का समापन हुआ, जो महाकुंभ के सशक्त आध्यात्मिक और सांस्कृतिक योगदान को सम्मानित करता है।

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय भोपाल में महाकुंभ कॉन्क्लेव 19वां गोलमेज सत्र:"महाकुंभ न केवल भारतीय संस्कृति का हिस्सा बल्कि आस्था, विश्वास और संस्कृति संगम-प्रो. पाण्डेय
केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के भोपाल परिसर में इंडिया थिंक काउंसिल द्वारा महाकुंभ कॉन्क्लेव 19वां गोलमेज सत्र आयोजित किया गया। इस सत्र का उद्देश्य महाकुंभ के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को समझना था। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. रमाकान्त पाण्डेय (निदेशक भोपाल परिसर) ने की, उन्होंने महाकुंभ के वैदिक काल से लेकर आधुनिक समय तक के महत्व पर चर्चा की। प्रो. पाण्डेय ने कहा, "महाकुंभ न केवल भारतीय संस्कृति का हिस्सा है, बल्कि यह आस्था, विश्वास और संस्कृति का अद्भुत संगम है।" उन्होंने महाभारत और ऋग्वेद के संदर्भ में महाकुंभ के धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं को उजागर किया। ऋषि महर्षियों का अद्भुत संगम है कुंभ-धनंजय चोपड़ा मुख्य वक्ता धनंजय चोपड़ा, इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने कुंभ को 'अलौकिक और अद्वितीय' बताया। उन्होंने इसे जन संस्कृति का मेला और ऋषि महर्षियों के अद्भुत संगम के रूप में परिभाषित किया। चौपड़ा ने रामचरित मानस की चौपाई उद्धृत करते हुए महाकुंभ के आध्यात्मिक महत्व को रेखांकित किया और इसे भारतीय चेतना के प्रसार का प्रतीक बताया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. अमिताभ पाण्डेय (IGRMS निदेशक) ने महाकुंभ को जीवन संस्कृति का उदाहरण बताते हुए कहा कि कुंभ एक आध्यात्मिक केंद्र है, जहां आस्था और विश्वास का संगम होता है। उन्होंने महाकुंभ में निरंतरता, वैयक्तिक विविधता और सांस्कृतिक चेतना पर विचार करने की आवश्यकता जताई। "हरित महाकुंभ" की आवश्यकता-प्रोफेसर तिवारी सत्र के दौरान वरिष्ठ पत्रकार प्रो. हर्षवर्धन त्रिपाठी और प्रो. नीलाभ तिवारी ने भी महाकुंभ के धार्मिक और आध्यात्मिक पहलुओं पर विचार व्यक्त किए। प्रो. तिवारी ने महाकुंभ के पर्यावरणीय पहलुओं पर बल देते हुए "हरित महाकुंभ" की आवश्यकता पर जोर दिया। इस कार्यक्रम का संचालन प्रो. कृपाशंकर शर्मा ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रो. भारत भूषण मिश्र ने महाकुंभ के ज्योतिषीय महत्व पर प्रकाश डालते हुए किया। इस सत्र में परिसर के सभी प्राध्यापक, शोध छात्र और कर्मचारी उपस्थित थे। कार्यक्रम के समापन पर "कल्याण मंत्र" के साथ इस विचार-मंच का समापन हुआ, जो महाकुंभ के सशक्त आध्यात्मिक और सांस्कृतिक योगदान को सम्मानित करता है।