सडक़ के ऊपर सडक़, सडक़ ऊंची-प्लिंथ नीची, बरसात का पानी तो घुसेगा ही

छत्तीसगढ़ संवाददाता रायपुर, 13 अगस्त।पिछले 35-40 वर्षों में नवीनीकरण के नाम पर बार-बार डामर की परत चढ़ाने से शहर की कई सडक़ें आस-पास के मकानों से ऊंची हो गई हैं। जिन मकानों की प्लिंथ कभी सडक़ से ऊपर होती थी, अब वे सडक़ से नीचे हो गई हैं। नतीजा बरसात में गंदा पानी बाउंड्री के भीतर और कई बार घरों के अंदर तक भर जाता है। रायपुर के शंकर नगर चौक से बिलासा ब्लड बैंक तक हाउसिंग बोर्ड के मकान कभी सडक़ से 2 फीट ऊपर थे, अब 2 फीट नीचे हैं। यह सडक़ वर्तमान में लोक निर्माण विभाग के अधीन है, और कुछ समय नगर निगम के पास भी रही। दोनों विभागों ने आवश्यकता न होते हुए भी सडक़ पर बड़ी-बड़ी गिट्टी और डामर की मोटी-मोटी परतें चढ़ाईं। इसी समस्या को लेकर रायपुर के नितिन सिंघवी ने लोनिवि के प्रमुख अभियंता से मुलाकात की थी। प्रमुख अभियंता ने, मुख्य अभियंता रायपुर को निर्देश जारी करते हुए लिखा शंकर नगर से लोधीपरा तक विगत वर्षों में लगातार डामरीकरण से सडक़ की ऊंचाई बहुत अधिक हो गई है, जिससे बरसात में दोनों ओर के मकानों में जलभराव होता है। यह समस्या केवल शंकर नगर की नहीं, पूरे शहर में हो सकती है। सिंघवी ने फरवरी में मुख्य सचिव को पत्र लिखकर आग्रह किया कि मद्रास हाई कोर्ट द्वारा दी गई व्यवस्था भी लागू की जाए। मद्रास हाई कोर्ट का आदेश मद्रास उच्च न्यायलय ने प्रकरण क्र. डब्लू.पी. 1963-2020 28.02.2020 में व्यवस्था की है कि समाचार पत्रों में तथा दृश्य मीडिया के माध्यम से यह विज्ञापन दिया जाए कि जब भी सडक़ें पुन: बनाई जाएं, ठेकेदारों द्वारा सडक़ों की मिलिंग आवश्यक है। लोगों को सूचित किया जाना चाहिए कि जब भी सडक़ें पुन: बनाई जाएं, मिलिंग अवश्य की जानी चाहिए। ठेकेदारों की ओर से विफलता की स्थिति में, जनता को अधिकारियों के टेलीफोन, मोबाइल और व्हाट्सएप के संपर्क नंबर उपलब्ध कराए जाने चाहिए, जिनके माध्यम से शिकायत की जा सके ताकि प्रारंभिक चरण में ही समस्या का समाधान किया जा सके। इसके अलावा, अधिकारियों द्वारा जांच की जानी चाहिए और उसके बाद, यदि यह पाया जाता है कि ठेकेदारों ने मिलिंग नहीं की है, तो उन्हें काली सूची में डाल दिया जाना चाहिए और ठेकेदारों से मुआवजा मांगा जाना चाहिए। क्या है मिलिंग मिलिंग में विशेष मशीन द्वारा पुरानी डामर परत को तय गहराई तक खुरचकर हटाया जाता है। प्राप्त सामग्री को पुन: सडक़ निर्माण में प्रयोग किया जा सकता है, जिससे लागत घटती है और पर्यावरण की रक्षा होती है। यह तकनीक खासकर उन जगहों पर उपयोगी है, जहाँ परत-दर-परत ऊंचाई बढ़ चुकी हो और उसे मूल स्तर पर लाना हो। क्या शासन की स्वीकृति जरूरी है? सिंघवी ने कहा कि जब लोक निर्माण विभाग एक दिन में आदेश दे सकता है, तो नगरी प्रशासन को इतना समय क्यों लग रहा है, छ: माह में आदेश जारी नहीं हुआ है? इंडियन रोड कांग्रेस ने भी मिलिंग के मानक तय कर रखे हैं। सडक़ कार्यों के लिए नगरीय निकाय, लोक निर्माण विभाग के शेड्यूल ऑफ रेट्स का पालन करते हैं, जिसमें मिलिंग की दरें पहले से तय हैं, ऐसे में शासन की स्वीकृति की आवश्यकता ही नहीं है।

सडक़ के ऊपर सडक़, सडक़ ऊंची-प्लिंथ नीची, बरसात का पानी तो घुसेगा ही
छत्तीसगढ़ संवाददाता रायपुर, 13 अगस्त।पिछले 35-40 वर्षों में नवीनीकरण के नाम पर बार-बार डामर की परत चढ़ाने से शहर की कई सडक़ें आस-पास के मकानों से ऊंची हो गई हैं। जिन मकानों की प्लिंथ कभी सडक़ से ऊपर होती थी, अब वे सडक़ से नीचे हो गई हैं। नतीजा बरसात में गंदा पानी बाउंड्री के भीतर और कई बार घरों के अंदर तक भर जाता है। रायपुर के शंकर नगर चौक से बिलासा ब्लड बैंक तक हाउसिंग बोर्ड के मकान कभी सडक़ से 2 फीट ऊपर थे, अब 2 फीट नीचे हैं। यह सडक़ वर्तमान में लोक निर्माण विभाग के अधीन है, और कुछ समय नगर निगम के पास भी रही। दोनों विभागों ने आवश्यकता न होते हुए भी सडक़ पर बड़ी-बड़ी गिट्टी और डामर की मोटी-मोटी परतें चढ़ाईं। इसी समस्या को लेकर रायपुर के नितिन सिंघवी ने लोनिवि के प्रमुख अभियंता से मुलाकात की थी। प्रमुख अभियंता ने, मुख्य अभियंता रायपुर को निर्देश जारी करते हुए लिखा शंकर नगर से लोधीपरा तक विगत वर्षों में लगातार डामरीकरण से सडक़ की ऊंचाई बहुत अधिक हो गई है, जिससे बरसात में दोनों ओर के मकानों में जलभराव होता है। यह समस्या केवल शंकर नगर की नहीं, पूरे शहर में हो सकती है। सिंघवी ने फरवरी में मुख्य सचिव को पत्र लिखकर आग्रह किया कि मद्रास हाई कोर्ट द्वारा दी गई व्यवस्था भी लागू की जाए। मद्रास हाई कोर्ट का आदेश मद्रास उच्च न्यायलय ने प्रकरण क्र. डब्लू.पी. 1963-2020 28.02.2020 में व्यवस्था की है कि समाचार पत्रों में तथा दृश्य मीडिया के माध्यम से यह विज्ञापन दिया जाए कि जब भी सडक़ें पुन: बनाई जाएं, ठेकेदारों द्वारा सडक़ों की मिलिंग आवश्यक है। लोगों को सूचित किया जाना चाहिए कि जब भी सडक़ें पुन: बनाई जाएं, मिलिंग अवश्य की जानी चाहिए। ठेकेदारों की ओर से विफलता की स्थिति में, जनता को अधिकारियों के टेलीफोन, मोबाइल और व्हाट्सएप के संपर्क नंबर उपलब्ध कराए जाने चाहिए, जिनके माध्यम से शिकायत की जा सके ताकि प्रारंभिक चरण में ही समस्या का समाधान किया जा सके। इसके अलावा, अधिकारियों द्वारा जांच की जानी चाहिए और उसके बाद, यदि यह पाया जाता है कि ठेकेदारों ने मिलिंग नहीं की है, तो उन्हें काली सूची में डाल दिया जाना चाहिए और ठेकेदारों से मुआवजा मांगा जाना चाहिए। क्या है मिलिंग मिलिंग में विशेष मशीन द्वारा पुरानी डामर परत को तय गहराई तक खुरचकर हटाया जाता है। प्राप्त सामग्री को पुन: सडक़ निर्माण में प्रयोग किया जा सकता है, जिससे लागत घटती है और पर्यावरण की रक्षा होती है। यह तकनीक खासकर उन जगहों पर उपयोगी है, जहाँ परत-दर-परत ऊंचाई बढ़ चुकी हो और उसे मूल स्तर पर लाना हो। क्या शासन की स्वीकृति जरूरी है? सिंघवी ने कहा कि जब लोक निर्माण विभाग एक दिन में आदेश दे सकता है, तो नगरी प्रशासन को इतना समय क्यों लग रहा है, छ: माह में आदेश जारी नहीं हुआ है? इंडियन रोड कांग्रेस ने भी मिलिंग के मानक तय कर रखे हैं। सडक़ कार्यों के लिए नगरीय निकाय, लोक निर्माण विभाग के शेड्यूल ऑफ रेट्स का पालन करते हैं, जिसमें मिलिंग की दरें पहले से तय हैं, ऐसे में शासन की स्वीकृति की आवश्यकता ही नहीं है।